Wednesday 15 October 2014

दर्द निवारक दवाएं: दुष्प्रभाव और सावधानियां

दर्द निवारक दवाएं: दुष्प्रभाव और सावधानियां


मित्रों , हम सबने कभी न कभी दर्द निवारक दवाओं का अपने जीवन में प्रयोग किया होगा. यदि कभी आपका सर दर्द करता है तो आप सोचते होंगे की चलो कोम्बिफ्लैम या ब्रुफिन खा ली जाय तो दर्द ठीक हो जाएगा. कुछ समय के लिए इससे आराम भी मिल जाता है. परन्तु अगर ऎसी दवाओं को रोज ही लेने की आदत पड़ जाए तो न केवल यह शरीर के लिए नुक्सानदायक होता है बल्कि इससे होने वाले साइड एफ्फेक्ट्स से मृत्यु तक हो सकती है.
drug-painkillersआजकल बाज़ार में अलग अलग कॉम्बिनेशन की अनेक दर्द निवारक दवाएं या पेनकिलर्स मौजूद हैं. इनका केमिकल कम्पोजीशन रोग के अनुसार अलग अलग होता है. इनमें से कुछ पेनकिलर्स ऐसे भी हैं जिनको अगर बिना उचित सलाह के अपनी मर्ज़ी से खाया जाय तो इनकी लत लग जाती है और भयानक बीमारियाँ भी हो जाती हैं. रोगी को इन दवाओं का गुलाम बनकर हमेशा इन पर निर्भर रहना पड़ता है. साधारण से दर्द को ठीक करने की कोशिश में लोग बिना डॉक्टर की सलाह के अनाप शनाप दवाएं खाने लगे हैं जिससे इन गोलियों के एडिक्शन की खतरनाक बीमारी के चंगुल में फंसते जा रहे हैं. यदि कभी इन दवाओं को लोग बंद भी करना चाहें और अचानक बंद कर दें तो इनके विदड्रोल सिम्पटम के कारण अनेक समस्याएं उठ खड़ी होती हैं जैसे-हाथ पैरों का कांपना, बैचैनी, गुस्सा, डायरिया, छींकें, अनिद्रा, नाक से पानी बहना आदि.

आइये पेन किलर्स से साइड इफेक्ट्स जानेंDrug-Rehab-Medicatioन

Gastritis- 
पेन किलर्स के ज़्यादा प्रयोग से सीने मं जलन, पेट दर्द, खट्टी डकारें और उलटी आने की समस्याएं होने लगती हैं. इसके बाद धीरे धीरे पेट में सूजन आ जाती है और उसमें घाव बनने लगते हैं. इसके बाद उसमें से खून भी बहने लगता है.
लिवर में सूजन-
अनेक मरीजों दर्द निवारक दवाओं के अधिक प्रयोग के कारण लिवर की सेल्स टूटने लगती हैं और भूख कम लगने लगती है.
किडनी की समस्याएं- 
दर्द निवारक दवाओं के अधिक प्रयोग के कारण किडनी खराब होने के केसेस बदते ही जा रहे हैं. किडनी की सेल्स डैमेज होने के कारण वो ठीक से काम नहीं कर पाती हैं.
ब्लड डिस्क्रैसिया- 
पेन किलर ज़्यादा लेने से खून की रासायनिक संरचना बदलने लगती है और इसे ब्लड डिस्क्रैसिया कहते हैं. इससे रोगियों की मृत्यु तक हो जाती है.
अस्थमा-
कुछ रोगियों को इन दवाओं के विपरीत प्रभावों के कारण अस्थमा भी हो जाता है.
मानसिक बीमारियाँ- 
इन समस्याओं में प्रमुख हैं-विचार शून्यता, याददाश्त कमज़ोर हो जाना, भ्रम, शक और वहां होने लगना और अन्य तरह की भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न हो जाना.
माइग्रेन-
किसी किसी मरीज़ को दर्द निवारक दवाएं ज्यादा लेने से माइग्रेन की भी समस्या होने लगती है.

हमेशा ध्यान रखें कि-Pain-When

1.दर्द कम करने के लिए ली जाने वाली कोई भी दवा सिर्फ उतने समय तक ही लें जब तक उसे आपके डॉक्टर ने कहा हो. एक बार दर्द खत्म होने के बाद दवा बंद कर दें और शौकिया तौर पर इसे नहीं लें.
2.अगर फिर इसी तरह का दर्द आपको होने लगे तो ये नहीं सोचें कि डॉक्टर ने पिछली बार जो दवा दी थी उसी को ले ली जाए और डॉक्टर की फीस बचा ली जाय. लोगों कि इसी प्रवृत्ति के कारण दवाओं के ज़्यादा साइड इफेक्ट्स हो रहे हैं.
3.अधिकांश पेनकिलर्स को खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है. इसे खाली पेट नहीं लें.
4.शराब इत्यादि से दूर रहें- पेनकिलर्स और शराब दोनों से एसिडिटी बनती है इसलिए दोनों को अगर एकसाथ लिया जाय तो एसिडिटी ज़्यादा होगी. शराब और पेन किलर्स को एक साथ सेवन हार्ट अटैक भी कर सकता है. इसलिए सावधान रहें.
5.शरीर में पानी की कमी नहीं होने दें. दवा सेवन के दौरान यथा संभव पानी पीते रहें. कम पानी पीने से किडनी से विषाक्त पदार्थ नहीं निकलेंगे और किडनी खराब हो सकती है.
6.कभी कभी कुछ गोलियों को निगलने की बजाय चबाकर खाते हैं. ऐसे में दवा की पूरी डोज तेजी से शरीर में घुलता है और कई बार हमारा शरीर उसके प्रभाव को संभाल नहीं पाता. यह दवा के ओवरडोज की तरह असर करता है. इसलिए अगर आपको पूरी एक टैबलेट लेनी है तो उसे तोड़कर लेने के बजाय पूरी ही खाएं.
7.एक बार में एक से अधिक पेन किलर दवा नहीं लें. दर्द कितना भी तेज हो या कैसा भी हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप बिना अपने डॉक्टर की सलाह के ज्यादा पेन किलर लें. किसी भी समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह से ही कोई दवा लें.
8.याद रखें ये केमिकल्स हैं जिसे बिना डॉक्टरी सलाह के अधिक मात्रा में लेने से आपके शरीर को जानलेवा नुक्सान भी हो सकता है.
9.अगर रोगी को पेनकिलर का एडिक्शन हो गया है तो उसे मनोचिकित्सक से इलाज करवाएं. इसमें रोगी को नशामुक्त होने की तरह से ही कुछ समय इलाज करवाना पड़ता है और कुछ समय में रोगी ठीक हो जाता है. कुछ रोगियों को नशामुक्ति के इलाज़ के साथ साथ काउंसिलिंग की भी ज़रूरत होती है. आमतौर पर इस पूरी प्रक्रिया में 4-6 माह लग जाते हैं.
जनहित में यह जानकारी शेयर करें.
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥
धन्यवाद !!!!
आपका अपना,
डॉ.स्वास्तिक
चिकित्सा अधिकारी
(आयुष विभाग, उत्तराखंड शासन)
(ये सूचना सिर्फ आपके ज्ञान वर्धन हेतु है. किसी भी गम्भीर रोग से पीड़ित होने पर चिकित्सक के परामर्श के बाद अथवा लेखक के परामर्श के बाद ही कोई दवा लें. पब्लिक हेल्थ के अन्य मुद्दों तथा जनहित के लिए सुझावों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

Saturday 11 October 2014

रतिवल्ल्लभ पाक



आयुर्वेद में एक से बढ़ कर एक ऐसे दिव्य योग उपलब्ध है जिनका सेवन करके शरीर में शक्ति का संचार किया जा सकता है
ऐसी ही एक दिव्य औषधि है 'रतिवल्लभ पाक' इसका सेवन करने पर खोयी हुइ शक्ति भी वापस आती है और संचित शक्ति शरीर में बनी रहती है
लाभ _____________
बलवीर्य वर्धक शीघ्रपतन मेंबहुत प्रभावी पुष्टिकारक स्तम्भन शक्ति बढ़ाने वाला किसी भी मधुमेह के अतिरिक्त अन्य प्रमेह के लिए उत्तम .....सभी प्रकार के वातजन्य रोगों में वात विकार नष्ट करने वाला और शक्ति प्रदायक
निर्माण सामग्री (1) गोंद बबूल 500 ग्राम,
(2) सौंठ 100 ग्राम,
(3) पिप्पर (या पीपल ) 50 ग्राम
(4) पीपरामूल 50 ग्राम,
5)लौंग+जायफल+ जावित्री+मोचरस+शुद्ध शिलाजीत (प्रत्येक 25 ग्राम मात्रा )
(6) काली मिर्च+दालचीनी+तेजपत्ता+नागकेसर+छोटी इलायची +प्रवाल भस्म+लौह भस्म+अभ्रक भस्म+वंग भस्म (प्रत्येक 10 ग्राम)
(7) केशर 5 ग्राम
(8)देशी घी (भैंस के दूध का) 300 ग्राम
(9) शक्कर 2 किलो
(10) गुलाब जल शुद्ध 20 ml
(11) बादाम भिगो कर छिलका निकला हुआ+पिस्ता कटा हुआ+काजू कटा+किशमिश+नारियल कटा हुआ (सभी आवश्यकतानुसार)
(12) चांदी का शुद्ध वरक चार से छः
निर्माण विधि :
(1)सर्वप्रथम गुलाब जल में केसर को भिगो कर रख दें और पांच घंटे बाद अच्छे से घोटाई
कर लें
(2)अब गोंद को ठीक से साफ करके कढा़ई में घी गर्म करें और उसमें गोंद को तलकर निकाल लें और ठंडा करके पीस लें
(3) सौंठ, पिप्पर व पीपलामूल को बारीक पीस छानकर रख लें।
(4) काली मिर्च+दालचीनी+तेजपत्ता+नागकेसर+छोटी इलायची को एक साथ कूट-पीसकर बारीक करके छान लें और अलग रख दें।
(5)प्रवाल भस्म+लौह भस्म+अभ्रक भस्म+वंग भस्म (प्रत्येक 10 ग्राम) को साफ स्वच्छ खरल में डालकर घुटाई करके रख लें (ऐसा करते समय खरल बिलकुल सुखी हो )
(6) लौंग+जायफल+ जावित्री+मोचरस+शुद्ध शिलाजीत (प्रत्येक 25 ग्राम मात्रा ) को महीन पीस कर अच्छे से घोटाई कर लें
(7) बादाम, पिस्ता, किशमिश, काजू नारियल सब बारीक कटे हुए तैयार कर लें।
(8)किसी कडाही आदि में 2 किलो शक्कर लेकर एक तार की चाशनी बनायें एक इसमें तले हुए गोंद और सौंठ, पिप्पर व पीपलामूल आदि तीनों का चूर्ण मिलाकर चाशनी में डाल दें और आंच धीमी कर दें।
(9)अब घोंटी हुई प्रवाल भस्म+लौह भस्म+अभ्रक भस्म+वंगभस्म डालकर धीरे धीरे चलते रहें रहें।
(10)चाशनी थोड़ी गाढ़ी और जमने लायक हो जाए, तब नीचे उतार कर कुछ ठंडा होने पर घोंटा हुआ लौंग+जायफल+ जावित्री+मोचरस+शुद्ध शिलाजीत का चूर्ण डालकर धीरे धीरे हिलाते रहें और गुलाबजल में घोंटा हुआ केशर डालकर अच्छी तरह मिलाएं।
(11)अब इसमें चांदी वरक मिला दें और कुछ देर चलाकर किसी ट्रे आदि में घी लगाकर इसे फैलाकर जमा दें दें और कटे हुए मेवे फैलाकर डाल दें। जब यह पाक जम जाए, तब काटकर किसी कांच के बर्तन में सुरक्षित कर लें ............
मात्रा और सेवन विधि :
अपनी पाचन शक्ति के अनुसार 25 ग्राम से 50 ग्राम वजन में, सुबह खाली पेट खूब चबा-चबाकर खाएं और ऊपर से मीठा गुनगुना दूध पियें
सावधानी ----------
मधुमेह के रोगी इससे बचें या डॉक्टर की सलाह से लें
यदि पाचन शक्ति अच्छी न हो तो उसे अवश्य बढ़ाने के उपाय करें अन्यथा इस बहुमूल्य
औषधि का पूरा लाभ नहीं मिलेगा
इसे बच्चे बूढ़े जवान स्त्री पुरूष सभी ले सकते है बस मात्रा का ध्यान रखें
कोशिश करें की सर्दी के मौसम में ही सेवन करें बहुत अधिक गर्मीं में इसका सेवन नहीं करें स्वाभाव से यह योग उष्ण प्रकृति का है

गुर्दे की पथरी की चिकित्सा

"गुर्दे की पथरी की चिकित्सा"




आजकल पथरी का रोग लोगों में आम समस्या बनती जा रही है| जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होता है।गुर्दे की पथरी (वृक्कीय कैल्कली, नेफरोलिथियासिस) (अंग्रेजी:Kidney stones) मूत्रतंत्र की एक ऐसी स्थिति है जिसमें, वृक्क (गुर्दे) के अन्दर छोटे-छोटे पत्थर सदृश कठोर वस्तुओं का निर्माण होता है। गुर्दें में एक समय में एक या अधिक पथरी हो सकती है। सामान्यत: ये पथरियाँ बिना किसी तकलीफ मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं , किन्तु यदि ये पर्याप्त रूप से बड़ी हो जाएं ( २-३ मिमी आकार के) तो ये मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। इस स्थिति में मूत्रांगो के आसपास असहनीय पीड़ा होती है।
यह स्थिति आमतौर से 30 से 60 वर्ष के आयु के व्यक्तियों में पाई जाती है और स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में चार गुना अधिक पाई जाती है। बच्चों और वृद्धों में मूत्राशय की पथरी ज्यादा बनती है, जबकि वयस्को में अधिकतर गुर्दो और मूत्रवाहक नली में पथरी बन जाती है। जिन मरीजों को मधुमेह की बीमारी है उन्हें गुर्दे की बीमारी होने की काफी संभावनाएं रहती हैं। अगर किसी मरीज को रक्तचाप की बीमारी है तो उसे नियमित दवा से रक्तचाप को नियंत्रण करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर रक्तचाप बढ़ता है, तो भी गुर्दे खराब हो सकते हैं।


गुर्दे की पथरी के कारण


किसी पदार्थ के कारण जब मूत्र सान्द्र (गाढ़ा) हो जाता है तो पथरी निर्मित होने लगती है। इस पदार्थ में छोटे छोटे दाने बनते हैं जो बाद में पथरी में तब्दील हो जाते है। इसके लक्षण जब तक दिखाई नहीं देते तब तक ये मूत्रमार्ग में बढ़ने लगते है और दर्द होने लगता है। इसमें काफी तेज दर्द होता है जो बाजू से शुरु होकर उरू मूल तक बढ़ता है।


तथा रोजाना भोजन करते समय उनमें जो कैल्शियम फॉस्फेट आदि तत्व रह जाते हैं, पाचन क्रिया की विकृति से इन तत्वों का पाचन नहीं हो पाता है। वे गुर्दे में एकत्र होते रहते हैं। कैल्शियम, फॉस्फेट के सूक्ष्म कण तो मूत्र द्वारा निकलते रहते हैं, जो कण नहीं निकल पाते वे एक दूसरे से मिलकर पथरी का निर्माण करने लगते हैं। पथरी बड़ी होकर मूत्र नली में पहुंचकर मूत्र अवरोध करने लगती है। तब तीव्र पीड़ा होती है। रोगी तड़पने लगता है। इलाज में देर होने से मूत्र के साथ रक्त भी आने लगता है जिससे काफी पीड़ा होती है। तथा लंबे समय तक पाचन शक्ति ठीक न रहने और मूत्र विकार भी बना रहे तो गुर्दों में कुछ तत्व इकट्ठे होकर पथरी का रूप धारण कर लेते हैं।




किसी प्रकार से पेशाब के साथ निकलने वाले क्षारीय तत्व किसी एक स्थान पर रुक जाते है,चाहे वह मूत्राशय हो,गुर्दा हो या मूत्रनालिका हो,इसके कई रूप होते है,कभी कभी यह बडा रूप लेकर बहुत परेशानी का कारक बन जाती है,पथरी की शंका होने पर किसी प्रकार से इसको जरूर चैक करवा लेना चाहिये.


गुर्दे की पथरी के लक्षण




पीठ के निचले हिस्से में अथवा पेट के निचले भाग में अचानक तेज दर्द, जो पेट व जांघ के संधि क्षेत्र तक जाता है। दर्द फैल सकता है या बाजू, श्रोणि, उरू मूल, गुप्तांगो तक बढ़ सकता है, यह दर्द कुछ मिनटो या घंटो तक बना रहता है तथा बीच-बीच में आराम मिलता है। दर्दो के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी होने की शिकायत भीहो सकती है। यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं ; बार बार और एकदम से पेशाब आना, रुक रुक कर पेशाब आना, रात में अधिक पेशाब आना, मूत्र में रक्त भी आ सकता है। अंडकोशों में दर्द, पेशाब का रंग असामान्य होना। गुर्दे की पथरी के ज्यादातर रोगी पीठ से पेट की तरफ आते भयंकर दर्द की शिकायत करते हैं। यह दर्द रह-रह कर उठता है और कुछ मिनटो से कई घंटो तक बना रहता है इसे ”रीलन क्रोनिन” कहते हैं। यह रोग का प्रमुख लक्षण है, इसमें मूत्रवाहक नली की पथरी में दर्दो पीठ के निचले हिस्से से उठकर जांघों की ओर जाता है।


गुर्दे की पथरी के प्रकार

सबसे आम पथरी कैल्शियम पथरी है। पुरुषों में, महिलाओं की तुलना में दो से तीन गुणा ज्यादा होती है। सामान्यतः 20 से 30 आयु वर्ग के पुरुष इससे प्रभावित होते है। कैल्शियम अन्य पदार्थों जैसे आक्सलेट(सबसे सामान्य पदार्थ) फास्फेट या कार्बोनेट से मिलकर पथरी का निर्माण करते है। आक्सलेट कुछ खाद्य पदार्थों में विद्यमान रहता है।
पुरुषों में यूरिक एसिड पथरी भी सामान्यतः पाई जाती है। किस्टिनूरिया वाले व्यक्तियों मेंकिस्टाइन पथरी निर्मित होती है। महिला और पुरुष दोनों में यह वंशानुगत हो सकता है।
मूत्रमार्ग में होने वाले संक्रमण की वजह से स्ट्रवाइट पथरी होती है जो आमतौर पर महिलाओं में पायी जाती है। स्ट्रवाइट पथरी बढ़कर गुर्दे, मूत्रवाहिनी या मूत्राशय को अवरुद्ध कर सकती है।


बचाव के कुछ उपाय

1. पर्याप्त जल पीयें ताकि 2 से 2.5 लीटर मूत्र रोज बने।पथरी के मरीज को दिन में कम से कम 5-6 लीटर पानी पीना चाहिये। अधिक मात्रा में मुत्र बनने पर छोटी पथरी मुत्र के साथ निकल जाती है।


2. आहार में प्रोटीन, नाइट्रोजन तथा सोडियम की मात्रा कम हो।


3. ऐसे पदार्थ न लिये जांय जिनमें आक्जेलेट्‌ की मात्रा अधिक हो; जैसे चाकलेट, सोयाबीन, मूंगफली, पालक आदि


4. कोका कोला एवं इसी तरह के अन्य पेय से बचें।


5. विटामिन - सी की भारी मात्रा न ली जाय।


6. नारंगी आदि का रस (ज्यूस) लेने से पथरी का खतरा कम होता है।


पथरी में ये खाएं:
कुल्थी के अलावा खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, चौलाई का साग, मूली, आंवला, अनन्नास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि खाएं। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में 6 से 8 गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में बहुत हितकारी सिद्ध होता है।


ये न खाएं:
पालक, टमाटर, बैंगन, चावल, उड़द, लेसदार पदार्थ, सूखे मेवे, चॉकलेट, चाय, मद्यपान, मांसाहार आदि। मूत्र को रोकना नहीं चाहिए। लगातार एक घंटे से अधिक एक आसन पर न बैठें। जिसको भी शरीर मे पथरी है वो चुना कभी ना खाएं !काले अंगूरों के सेवन से परहेज करें।तिल, काजू अथवा खीरे, आँवला अथवा चीकू (सपोटा) में भी आक्सेलेट अधिक मात्रा में होता है।बैगन,फूलगोभी में यूरिक एसिड व प्यूरीन अधिक मात्रा में पाई जाती है।


पथरी का आयुर्वेद इलाज- आचार्य सुश्रुत ने अश्मरी चिकित्सा रोगाधिकार में कहा है कि पथरी में शल्य कर्म आवश्यक होता है . ऐसा बड़ी व उस पथरी के लिये कहा गया है जो मूत्र मार्ग में फंस जाती है. निम्न उपाय से पथरी के इलाज़ में काफी मदद मिलती है.


1. जिस व्यक्ति को पथरी की समस्या हो उसे खूब केला खाना चाहिए क्योंकि केला विटामिन बी-6 का प्रमुख स्रोत है, जो ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता है व ऑक्जेलिक अम्ल को विखंडित कर देता है। इसके आलावा नारियल पानी का सेवन करें क्योंकि यह प्राकृतिक पोटेशियम युक्त होता है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है और इसमें पथरी घुलती है।


2. कहने को करेला बहुत कड़वा होता है पर पथरी में यह भी रामबाण साबित होता है| करेले में पथरी न बनने वाले तत्व मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस होते हैं और वह गठिया तथा मधुमेह रोगनाशक है। जो खाए चना वह बने बना। पुरानी कहावत है। चना पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है।


3. गाजर में पायरोफॉस्फेट और पादप अम्ल पाए जाते हैं जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। गाजर में पाया जाने वाला केरोटिन पदार्थ मूत्र संस्थान की आंतरिक दीवारों को टूटने-फूटने से बचाता है।


4. इसके अलावा नींबू का रस एवं जैतून का तेल मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लीटर नींबू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें।
इस प्राकृतिक उपचार से बहुत जल्द हीं आपको गुर्दे की पथरी से निजात मिल जायेगी साथ हीं पथरी से होने वाली पीड़ा से भी आपको मुक्ति मिल जाएगी।


5. पथरी को गलाने के लिये अध उबला चौलाई का साग दिन में थोडी थोडी मात्रा में खाना हितकर होता है, इसके साथ आधा किलो बथुए का साग तीन गिलास पानी में उबाल कर कपडे से छान लें, और बथुये को उसी पानी में अच्छी तरह से निचोड कर जरा सी काली मिर्च जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर इसे दिन में चार बार पीना चाहिये, इस प्रकार से गुर्दे के किसी भी प्रकार के दोष और पथरी दोनो के लिए साग बहुत उत्तम माने गये है।


6. जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इसके अलावा तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।


7. एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें, उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे, पथरी में लाभ होगा|


8. प्याज में पथरी नाशक तत्व होते हैं। करीब 70 ग्राम प्याज को अच्छी तरह पीसकर या मिक्सर में चलाकर पेस्ट बनालें। इसे कपडे से निचोडकर रस निकालें। सुबह खाली पेट पीते रहने से पथरी छोटे-छोटे टुकडे होकर निकल जाती है।


9. पहाडी कुल्थी और शिलाजीत दोनो एक एक ग्राम को दूध के साथ सेवन करने पथरी निकल जाती है


10. एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें,फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें,उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे,पथरी और पेशाब वाली बीमारियों में फ़ायदा मिलेगा।


11. सूखे आंवले को नमक की तरह से पीस लें,उसे मूली पर लगाकर चबा चबा कर खायें,सात दिन के अन्दर पथरी पेशाब के रास्ते निकल जायेगी,सुबह खाली पेट सेवन करने से और भी फ़ायदा होता है।


12. तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।


13. पखानबेद नाम का एक पौधा होता है! उसे पथरचट भी कुछ लोग बोलते है! उसके पत्तों को पानी मे उबाल कर काढ़ा बना ले! मात्र 7 से 15 दिन मे पूरी पथरी खत्म!! और कई बार तो इससे भी जल्दी खत्म हो जाती


14. बथुआ को पानी में उबालकर इसके रस में नींबू, नमक व जीरा मिलाकर नियमित पीने से पेशाब में जलन, पेशाब के समय दर्द तथा पथरी दूर होती है।


16. पथरी से बचाव के लिये रातभर मक्के के बाल (सिल्क) को पानी में भिगाकर सुबह सिल्क हटाकर पानी पीने से लाभ होता है। पथरी के उपचार में सिल्क को पानी में उबालकर बनाये गये काढे का प्रयोग होता है।


17. आम के ताजा पत्ते छाया में सुखाकर, बारीक पीस कर आठ ग्राम मात्रा पानी मे मिलाकर प्रात: काल प्रतिदिन लेने से पथरी समाप्त हो सकती है।


18. दो अन्जीर एक गिलास पानी मे उबालकर सुबह के वक्त पीयें। एक माह तक लेना जरूरी है।





19. कुलथी की दाल का सूप पीने से पथरी निकलने के प्रमाण मिले है। २० ग्राम कुलथी दो कप पानी में उबालकर काढा बनालें। सुबह के वक्त और रात को सोने से पहिले पीयें।एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।
कुल्थी का पानी विधिवत लेने से गुर्दे और मूत्रशय की पथरी निकल जाती है और नयी पथरी बनना भी रुक जाता है। किसी साफ सूखे, मुलायम कपड़े से कुल्थी के दानों को साफ कर लें। किसी पॉलीथिन की थैली में डाल कर किसी टिन में या कांच के मर्तबान में सुरक्षित रख लें।


कुल्थी का पानी बनाने की विधि: किसी कांच के गिलास में 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुल्थी डाल कर ढक कर रात भर भीगने दें। प्रात: इस पानी को अच्छी तरह मिला कर खाली पेट पी लें। फिर उतना ही नया पानी उसी कुल्थी के गिलास में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें। दोपहर में कुल्थी का पानी पीने के बाद पुन: उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें।इस प्रकार रात में भिगोई गई कुल्थी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम पीने के बाद उन कुल्थी के दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं। महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गल कर निकल जाती है।


20. स्टूल पर चढकर १५-२० बार फ़र्श पर कूदें। पथरी नीचे खिसकेगी और पेशाब के रास्ते निकल जाएगी। निर्बल व्यक्ति यह प्रयोग न करें।


21. दूध व बादाम का नियमित सेवन से पथरी की संभावना कम होती है।


22. गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।


23. गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है


24. पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।इसमें जैविक परमाणु होते हैं जो खनिज पदार्थो को उत्पन्न होने से रोकते हैं .


25. 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।


26. पका हुआ जामुन पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।

27. सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है।


28. मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पी‍जिए। पथरी निकल जाएगी।


29.तीन हल्की कच्ची भिंड़ी को पतली-पतली लम्बी-लम्बी काट लें। कांच के बर्तन में दो लीटर पानी में कटी हुई भिंड़ी ड़ाल कर रात भर के लिए रख दें। सुबह भिंड़ी को उसी पानी में निचोड़ कर भिंड़ी को निकाल लें। ये सारा पानी दो घंटों के अन्दर-अन्दर पी लें। इससे किड़नी की पथरी से छुटकारा मिलता है।


30. महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का सेवन कराने में पथरी टूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी होतो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।


31. पतंजलि का दिव्य वृक्कदोष हर क्वाथ १० ग्राम ले कर डेढ़ ग्लास पानी में उबाले .चौथाई शेष रह जाने पर सुबह खाली पेट और दोपहर के भोजन के ५-६ घंटे बाद ले .इसके साथ अश्मरिहर रस के सेवन से लाभ होगा . जिन्हें बार बार पथरी बनाने की प्रवृत्ति है उन्हें यह कुछ समय तक लेना चाहिए


लिथोट्रिप्सी तकनीक


पहले पथरी हो जाने पर बड़ा ऑपरेशन ही उसका अंतिम उपाय होता था, लेकिन अब नई तकनीक लिथोट्रिप्सी आ गई है। इससे पथरी का इलाज आसानी से किया जा सकता है । लिथोट्रिप्सी तकनीक के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं , रायपुर स्टोन क्लीनिक के सर्जन डॉ. कमलेश अग्रवाल ।



क्या है लिथोट्रिप्सी तकनीक ?
लिथोट्रिप्सी चिकित्सा जगत की आधुनिक तकनीकों में से एक है गुर्दे की पथरी के इलाज में इसका उपयोग किय जाता है । लिथोट्रिप्सी दो शब्दों से मिलकर बना है । लिथो का अर्थ है स्टोन या पथरी और ट्रिप्सी का अर्थ है तोड़ना । लिथोट्रिप्सी बिना शल्य क्रिया के पथरी को तोड़कर छोटे-छोटे टुकड़ो के रुप में शरीर से बाहर निकालने की आसान व सुरक्षित विधि है ।




प्रकिया
लिथोट्रिप्सी तकनीक द्वारा गुर्दे, मूत्राशय एवं मूत्रनली में स्थित किसी भी आकार की पथरी को चूरा करके बहुत आसानी से कम समय में निकाला जाता है । लिथोट्रिप्सर नामक मशीन द्वारा ध्वनि तरंगें उत्पन्न करके उस स्थान पर प्रेषित की जाती है , जहाँ पर पथरी होती हैं । ये ध्वनि तरंगें अल्ट्रा साउंड में प्रयुक्त ध्वनि तरंगों की तरह होती है । इन तरंगों द्वारा पथरी को तोड़कर रेत के समान बारीक कणों में बदल दिया जाता है । ये कण पेशाब के साथ आसानी से शरीर से बाहर निकल जाते हैं ।


इलाज के पूर्व परीक्षण
लिथोट्रिप्सी के इलाज से पूर्व सामान्य परीक्षण किये जाते हैं। यह एक आउटडोर प्रक्रिया है। इसमें मरीज को भर्ती होने की जरुरत नहीं होती। पूरी प्रक्रिया में करीब 30 से 40 मिनट तक का औसत समय लगता है।


तकनीक के फ़ायदे
लिथोट्रिप्सी द्वारा किसी भी आयु के मरीज का उपचार पूर्णतया सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है ।
इसमें किसी तरह की शारीरिक-मानसिक परेशानी नहीं होती।
हृदयरोग, तपेदिक, उच्च रक्तचाप,मधुमेह,अस्थमा अथवा किसी क्रानिक बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए ये विधि उपयुक्त मानी जाती है , क्योंकि ऎसे मरीजों में शल्यक्रिया तुरंत करना संभव नहीं होता है ।
इस तकनीक में मरीज को रक्त की जरुरत नहीं होती,इसलिए किसी अन्य रोग के संक्रमण का खतरा नहीं रहता ।
शरीर में कहीं चीर-फाड़ नहीं की जाती, इस कारण कटनें का निशान नहीं पड़ता ।
लिथोट्रिप्सी मशीन से पित्तनली एवं पेनक्रियाण ग्रंथी का उपचार भी संभव है।


यह उपचार काफी सामान्य है और पूरी प्रक्रिया में कोई दवा अथवा दर्द निवारक इंजेक्शन का प्रयोग नहीं किया जाता ।


सहायक उपचार- हिमालय ड्रग कंपनी की सिस्टोन की दो गोलियां दिन में 2-3 बार प्रतिदिन लेने से शीघ्र लाभ होता है। कुछ समय तक नियमित सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर बाहर निकल जाती है। यह मूत्रमार्ग में पथरी, मूत्र में क्रिस्टल आना, मूत्र में जलन आदि में दी जाती है।स्टोनिल कैप्सूल( हकीम हाशमी )एक 100% हर्बल जड़ी बूटी युक्त उपाय अपने को पूरी मूत्र प्रणाली के लिए एक टॉनिक के रूप में दोनों स्वस्थ और रोगग्रस्त गुर्दे के कामकाज और कार्य में सुधार करने की क्षमता के लिए जाना जाता है. यह हर्बल कैप्सूल गुर्दे में पत्थर गठन के एक आम स्वास्थ्य विकार, जो दुनिया में लोगों की काफी संख्या को प्रभावित करता है. उसका उपचार में सहायता करता है यह मुख्य रूप से कैल्शियम का संचय, फॉस्फेट, और गुर्दे में oxalate जो क्रिस्टल या पत्थर को निश्चित रूप से निकल बहार करता है .


आपको गुर्दे की पथरी जिन्हें बार-बार हो रही है उन्हें खान-पान में परहेज बरतना चाहिए, ताकि समस्या से बचा जा सकता है। साथ ही एक स्वस्थ व्यक्ति को तो प्रतिदिन 3-5 लीटर पानी पीना चाहिए| यदि किसी को एक बार पथरी की समस्या हुई, तो उन्हें यह समस्या बार-बार हो सकती है। अतः खानपान पर ध्यान रखकर पथरी की समस्या से निजात पाई जा सकती है।


होमियोपैथिक चिकित्सा :



BERBERIS VULGARIS: इस होमियोपैथिक दवा का मदर टिंचर पेशाब के पथरी में बहुत उपयोगी हैं। इस दवा की 10-15 बूंदों को एक चौथाई (1/ 4) कप गुण गुने पानी मे मिलाकर दिन मे चार बार (सुबह,दोपहर,शाम और रात) लेना है। चार बार अधिक से अधिक और कमसे कम तीन बार|इसको लगातार एक से डेढ़ महीने तक लेना है कभी कभी दो महीने भी लग जाते है। CHINA 1000: दुबारा पथरी न हो इसके लिए चाइना १००० कि शक्ति में केवल एक दिन तीन समय में खायें और पथरी से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं।

CANTHARIS 6 : यदि पेशाब की पेशाब में जल जाने जैसा जलन,वेग, कुथन इत्यादि रहे तो कैन्थेरिस से लाभ होगा। यह मूत्र पथरी की बहुमूल्य दवा है।
SARSAPARILLA: इसमें पेशाब जल्दी जल्दी लगता है और थोडा थोडा होता है। पेशाब के साथ छोटी छोटी पथरी निकलती हैं, गुर्दे में दर्द रहता है।
HEDEOMA: पेशाब में लाल रंग के बालू के कण कि तरह का पदार्थ निकलता है,यूरेटर में दर्द रहता है।

Wednesday 8 October 2014

एड्स रोग चिकित्सा जानकारी सावधानी (Careful medical information on AIDS)

एड्स रोग चिकित्सा जानकारी सावधानी (Careful medical information on AIDS)
एड्स रोग की औषधि और चिकित्सा-
आज के समय में वैज्ञानिकों ने बडे़-बड़े रोगों से लड़ने की कई तरह की औषधियां तैयार कर ली हैं जो हर तरह से कारगर साबित हुई हैं। लेकिन एच.आई.वी. अर्थात एड्स जैसे रोग से लड़ने में अभी भी वैज्ञानिक पूरी तरह से कामयाब नहीं हुए हैं। इसका एक कारण भी है कि एड्स का विषाणु अपनी अजीब सी बनावट के कारण अपना सूक्ष्म रूप बदल लेता है। इसलिए इस पर कोई असरकारक औषधि तैयार नहीं हो पा रही है। वैसे आजकल एड्स रोग के लिए ए-जेड.टी.(जिडोन्यूडान), डी.डी.आई. और डी.डी.सी. आदि औषधियों का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन इनका असर भी ज्यादा समय तक नहीं रहता।
इसके अलावा यह औषधियां इतनी ज्यादा मंहगी हैं कि साधारण व्यक्ति को अगर यह रोग होता है तो वह इन औषधियों को खरीद भी नहीं सकता। वैसे भी यह औषधियां एड्स के रोग को जड़ से समाप्त नहीं कर पाती हैं केवल रोगी का जीवन 2-3 साल तक और बढ़ा देती हैं। एड्स के रोगी के साथ एक और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह सामने आती है कि इस रोग का वायरस एच.आई.वी. पॉजीटिव रोगी के खून में ही नहीं बल्कि दूसरे ऊतकों, अस्थि-मज्जा, जिगर तथा तिल्ली आदि में भी फैल जाता है। इसलिए अगर इस रोग से ग्रस्त रोगी के शरीर का पूरा का पूरा खून भी बदल दिया जाए तो भी उसे नहीं बचाया जा सकता।
एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर साधारण तरह का संक्रमण होता है तो क्लोरीन तथा हाइड्रोजन परॉक्साइड उसे समाप्त कर देते हैं क्योंकि इनके अंदर जीवाणुओं को मारने की शक्ति होती है लेकिन यह बहुत ज्यादा जहरीले होते हैं। इसी कारण से इनका प्रयोग एड्स रोग में नहीं किया जा सकता क्योंकि यह रोगी के ऊतकों को भी नष्ट कर देते हैं। अगर एच.आई.वी. पॉजीटिव व्यक्ति स्त्री के साथ संभोग करते समय कंडोम का उपयोग करे तो वह दुबारा संक्रमण से बच सकता है। इसके साथ ही हर व्यक्ति को अपने भोजन में पौष्टिकता का ख्याल भी रखना चाहिए। रोजाना ताजी हवा खाने से, व्यायाम करने से, छोटे-मोटे रोगों में लापरवाही न बरतना, मानसिक तनाव से दूर रहना, मन में आत्मविश्वास भरना आदि से व्यक्ति ज्यादा समय तक जीवित रह सकता है। वैसे तो वैज्ञानिक पूरे जी जान से एड्स रोग को दूर करने की औषधियों को खोजने में लगे हुए हैं लेकिन अभी तक उन्हें कोई सफलता हासिल नहीं हो पा रही है।
जानकारी-
जिन व्यक्तियों को किसी कारण से एच.आई.वी. अर्थात एड्स का रोग लग जाता है चाहे वह असुरक्षित शारीरिक संबंधों के कारण न होकर दूसरी वजह से हो जैसे किसी एड्स से संक्रमित व्यक्ति का खून उस व्यक्ति को चढ़ा देने से आदि तो उस व्यक्ति से उसके परिवार वाले, दोस्त, पड़ोसी, रिश्तेदार या कोई भी बहुत ही कटा-कटा सा बर्ताव करने लगते हैं। इसलिए इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति डाक्टर से जांच करवाने से डरता है। इसके लिए जरूरी है कि अगर किसी व्यक्ति के घर में किसी व्यक्ति को एड्स का रोग घेर लेता है तो उसके घर वालों को उसके साथ किसी तरह का भेदभावपू्र्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए, उसे भरोसा दिलाना चाहिए कि उसकी हर एक बात को घर के अंदर ही रखा जाएगा। फिर भी जांच करवाने से पहले रोगी व्यक्ति की रजामंदी जरूर ले लेनी चाहिए। इसके अलावा उसे यह भी भरोसा दिलाना चाहिए कि जांच के बाद उसी के परामर्श से उसकी चिकित्सा की जाएगी।
अक्सर डाक्टर किसी साधारण व्यक्तियों का खून लेता है तो वह उसका उपयोग किसी और पर करने के लिए उसकी जांच करना जरूरी नहीं समझता। इसलिए डॉक्टर को पूरी तरह सावधान रहना चाहिए। डॉक्टर को पहले रोगी के खून का सेंपल ले लेना चाहिए और उस सेंपल को भी गुप्त रखना चाहिए। ऐसा करने से डॉक्टर और सरकार दोनों को एड्स रोग को रोकने में मदद मिलती है। इसके साथ ही एड्स रोग के रोगी जो अपनी जांच करवाने में डरते हैं उन्हे भी प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वह अपने मन से अपनी जांच करवा लें। इसके लिए सबसे पहले डॉक्टरों को सावधान रहने की जरूरत हैं। खून से बनने वाली चीजों की भी जरूरी रूप से एच.आई.वी. की जांच की जाए। अगर कोई व्यक्ति अस्पताल आदि में खून आदि चढ़वाता है तो उसे भी पहले डॉक्टर से उस खून की जांच का प्रमाणपत्र देख लेना चाहिए। यदि कोई डॉक्टर ऐसे मामलों में असावधानी बरतता है या गलत काम को बढ़ावा देता है तो उसके खिलाफ एक्शन लेने से डरना नहीं चाहिए। ऐसा करने से हर व्यक्ति की आंख खुलेगी और न तो कोई गलत काम होगा और न ही कोई किसी को गलत काम करने ही देगा।
सावधानी-
किसी भी अपरिचित स्त्री या पुरुष के साथ संभोग करते समय कंडोम का प्रयोग जरूर करें।
अस्पताल में खून चढ़वाने से पहले उस खून की जांच का सर्टीफिकेट जरूर देख लें।
स्त्री के साथ गुदामैथुन और मुखमैथुन आदि करने से दूर रहना चाहिए तथा मासिकस्राव के दिनों में जहां तक हो सके शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। इसके अलावा इस तरह की संभोग क्रिया से भी दूर रहे जिसमें कि तरल पदार्थों की अदला-बदली हो।
पहले से प्रयोग किया हुआ इंजेक्शन, शेव कराते समय पहले प्रयोग किया हुआ

झुर्रियों से बचाव व उसका उपचार

झुर्रियों से बचाव व उसका उपचार

Skin Wrinkles and its prevention


झुर्रियां अकसर बढ़ती उम्र में सभी में होती है। विशेषकर ज्यादा गर्मी या ज्यादा सर्दी के दौरान चेहरे पर झुर्रियां यानी बूढी रेखाओं के पड़ने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.लेकिन आज की जीवनशैली में लगातार बदलाव होने के कारण अब असमय भी झुर्रियां होने लगी हैं।
घरेलू उपचार जो आपके लिए बहुत ही लाभदायक हो सकते हैं।
* गुलाबजल को फ्रीजर में जमाकर इसे नियमित रूप से झुर्रियों वाली जगह पर मलें। त्वचा टाइट रहेगी ।
* गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी तरह धोएं फिर उसे खुरदरे तौलिए से रगड-रगड़ कर सुखा लें। आधा चम्मच दुध की ठंडी मलाई में नींबु के रस की चार पाँच बूंदें मिलाकर झुर्रियाँ तब तक मलते रहें जब तक कि मलाई घुलकर त्वचा में समा न जाए।आधा घण्टे बाद पानी से धो डालें परन्तु साबुन का प्रयोग न करें। एक माह तक नियमित इस प्रयोग से झुर्रियाँ दुर होती हैं तथा चेहरे के दाग धब्बे भी गायब हो जाते हैं।
* खीरे के रस या फिर खीरे के छोटे-छोटे पीस काटकर झुर्रियों वाली जगह पर लगाकर उसकी मसाज करें।
* हल्दी या चंदन का लेप लगाने से भी झुर्रियों में लाभ मिलता हैं।
* जब झुर्रियां पडती हैं तो त्‍वचा पर गहरे रंग के धब्‍बे दिखाई देने लगते हैं। इसका मतलब कि मृत कोशिकाएं चेहरे को बूढा बना रहीं हैं। इसको दूर करने के लिए चेहरे पर स्‍क्रबिंग करनी चाहिए जिससे डेड सेल्‍स हट जाएं और नई त्‍वचा सामने आ जाए।
* पके हुए पपीते का एक टुकडा काटकर चेहरे पर घिसें या मसलकर चेहरे पर लगाएं। कुछ देर बाद धो लें। ऐसा लगातार करने से चेहरे की झुर्रियाँ दूर होती हैं,व चेहरे की रंगत भी निखरती है।
* त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने के लिए आधा गिलास गाजर का रस नित्य खाली पेट कम से कम 15 दिन तक लें।
* चेहरे की झुर्रियाँ मिटाने और युवा बनाये रखने के लिए अंकुरित चने व मूंग को सुबह शाम अवश्य ही खाएँ।
* सर्दियों में तेल से मसाज कर करके गरम पानी से नहाएं और नहाने के बाद क्रीम से भी मसाज करें। इससे त्‍वचा टाइट रहेगी और रुखी भी नहीं होगी।
* विटामिन सी और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर आहार जैसे की मछली आदि में होते है उसका ज्यादा से ज्यादा सेवन करें इससे त्वचा जवाँ बनी रहती है।
* चेहरे पर कॉफी पाउडर का लेप लगाने से कॉफी पाउडर में मौजूद कैफीन की वजह से चेहरे की झुर्रियां बहुत तेजी से खत्म होती है ।
* झुर्रियों के सफल उपचार के लिए पानी पीना बहुत जरूरी है, दिन में कम से 14 -15 गिलास पानी चाहिए ।
* सुंदर,गोरी और टाइट त्वचा के लिए सप्ताह में 1-2 बार चंदन फेस पैक लगाना चाहिए । चंदन पाउडर का पैक चेहरे पर पड़े गहरे दाग धब्बे , झाइयां और झुर्रियों को जल्दी दूर करता है।
* हर रात को कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें, इससे चेहरे के डार्क सर्किल और आंखें सूजी हुई नजर नहीं आएंगी। कभी भी तकिये में मुंह छिपा कर भी नहीं सोएं क्योंकि इससे भी चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं।
* हमारी त्वचा पर तेज धूप का बहुत कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए धूप में निकलने से पहले त्वचा पर ऐसा सनस्क्रीन, जिसमें जिंक ऑक्साइड हो जरूर लगाएं।
* एलोवेरा एवं शहद एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर हैं। त्वचा में नमी का स्तर बढ़ाने के लिए इन्हे प्रतिदिन आजमाएं इनसे भी झुर्रियां कम होंगी। * उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे शरीर में कोलाजिन बनाना बंद हो जाता है, जिससे त्वचा में लचीलापन कम हो जाता है। इस बचने के लिए नमी वाला साबुन और क्रीम का रोज़ इस्तमाल करें। नित्य विटामिन सी युक्त क्रीम प्रयोग करें और ज्यादातर समय धूप से दूर रहें।
* अपनी त्वचा को झुर्रियों से बचाने के लिए हमें नियमित रूप से ताजे फलों जैसे आम, जामुन, संतरा, मौसम्मी, लीची, सेव, अंगूर, नाशपाती, पपीता, अनार और हरी सब्जियों पालक, बंदगोभी और दिन में कम से कम एक बार सलाद का सेवन करना चाहिए । इनमें ढेर सारे विटामिन्स एवं खनिज मसलन आयरन, विटामिन सी, विटामिन बी, फाइबर इत्यादि होते हैं । जो अत्यंत हीं लाभकारी होते हैं तथा हमारी त्वचा को जवान एवं खुबसूरत बनाये रखते हैं
* नियमित व्यायाम करना बहुत जरुरी है। व्यायाम करने से हमारी हर कोशिका को ओक्सिजन एवं रक्त प्राप्त होता है जिससे आपकी त्वचा जवान रहती है तथा झुर्रियां भी दूर रहती है ।
* पेट साफ रखने और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर कर भी आप चेहरे पर झुर्रियां पड़ने से रोक सकते हैं।
* तनाव से यथासंभव बचे । तनाव से हमारे शरीर में एक रसायन कोरटीसोल का स्राव होता है जो हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाता है जिससे झुर्रियां शीघ्र पड़ती है ।
* गुस्सा करने से बचे । गुस्सा करने अथवा तरह तरह से मुंह बनाने से भी चेहरे पर उम्र के पहले हीं झुर्रियां पड़ जाती हैं।
* सिगरेट और शराब दोनों की ही वजह से झुर्रियों बहुत तेजी से पड़ती है । स्मोकिंग से हमारे होठों का रंग काला पड़ जाता है और चेहरे की त्वचा का कोलाजिन भी नष्ट होता है, जिससे चेहरे पर तेजी से झुर्रियां पड़ने लगती है