Monday 10 November 2014

Osteoarthritis: An Ayurvedic view | संधिवात और आयुर्वेद

Osteoarthritis: An Ayurvedic view संधिवात और आयुर्वेद 



ऑस्टियोआर्थराइटिस को आयुर्वेद में  संधिवात के रूप में जाना जाता है, जो कि जोडों का विकार है। इसका मतलब है, कि हमारे शरीर के निचले हिस्से की हड्डियों को सपोर्ट देने वाले सुरक्षात्मक कार्टिलेज और कोमल ऊतकों का किसी कारणवश टूटना शुरू होना हैं। इस हालत में किसी भी गतिविधि के बाद या आराम की लंबी अवधि के बाद जोड़ों का लचिलापन कम हो जाता है और वो सख्त हो जाते हैं, और दर्द दायक बनते हैं। 

प्रमुख लक्षण (symtpoms):

संधिवात में शरीर के बड़े जोड़ जैसे घुटने व कूल्हे अधिक प्रभावित होते हैं. प्रभावित जोड़ों में निम्न लक्षण पाए जाते हैं;
  1. जोड़ों में दर्द 
  2. जोड़ों में सूज़न
  3. प्रभावित जोड़ के ऊपर की त्वचा का गरम महसूस होना
  4. चलने फिरने में कठिनाई का अनुभव होना - जब बीमारी पुरानी हो जाती है तो मामूली चलने या खड़े होने में भी अत्यधिक दर्द होता है.

आयुर्वेद चिकित्सा (Ayurvedic treatments):

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए एलोपैथिक दर्द निवारक दवाओं से उपचार के अलावा, आयुर्वेदिक इलाज भी उपलब्ध हैं व नए रोगी अथवा जो रोगी ऐलोपैथिक दवाओं का लम्बे समय से सेवन कर रहे हैं, वे आयुर्वेद चिकित्सा अपना सकते हैं, क्योंकि एलोपैथिक दर्द निवारक दवाओं का लम्बे समय तक सेवन किडनी व लीवर पर बुरा प्रभाव डाल सकता है.
जैसा कि आप जानते हैं, आयुर्वेद कहता हैं की शरीर में तीन जीव-ऊर्जा या दोष होते हैं, जो हमारे शरीर के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं। वात, कफ और पित्त यह उनके नाम हैं। जब एक व्यक्ति किसी भी प्रकार की बीमारी से ग्रस्त होता है, तब यह इन दोषों में असंतुलन की वजह से होता हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस वात दोष में एक असंतुलन के कारण होता है और इसलिए ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक इलाज में वात को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे व्यक्ति को दर्द से राहत मिलने में आसानी होती हैं। संधिवात के आयुर्वेदिक इलाज में निम्न औषधियों (herbs) की महत्वपूर्ण भूमिका है;
  • गुग्गुल – ऊतकों को मजबूत बनाने के लिए व यह एंटी-इंफ्लेमेटरी भी होता है जिससे दर्द कम होता है.
  • त्रिफला – विषैले तत्वो को शरीर से साफ करने का कार्य करता है.
  • अश्वगंधा – शरीर और मन को आराम और तंत्रिका तंत्र को उत्तेजना प्रदान करता है व स्ट्रेस को कम करता है.
  • कॅस्टर(एरंडी) तेल – दर्द होनेवाले क्षेत्र में लगाने के साथ, ही इसका सेवन भी लिया जा सकता है क्योंकि यह एक प्रभावी वातशामक औषधि है.
  • बला – शरीर में रक्त परिसंचरण को बढ़ाने के लिए, दर्द को कम करने के लिए, नसों को ठीक करने के साथ ही शरीर में ऊतकों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
  • शालाकी – अपने सूजन विरोधी गुणों के लिए और शरीर की हड्डियों के करीब के ऊतकों की मरम्मत करने में सक्षम होने के गुण के लिए उपयोगी हैं.
बाजार में विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं उपलब्ध हैं, जो ऑस्टियोआर्थराइटिस से राहत और ठीक करने में मददगार साबित होती हैं। हालांकि, चिकित्सक और एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना आवश्यक होता हैं, क्योंकि वो आपकी बीमारी के अनुसार सही दवा देने में सक्षम होते हैं। दवाओं के अलावा आयुर्वेद में
ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज के लिए अन्य उपचार भी हैं। यह सब उपचार कई आयुर्वेदिक चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध होते हैं। इन उपचारों में से कुछ हैं –

  • अभ्यंग या वाह्य स्नेहन  – यह एक हर्बल तेल मालिश है, जो ऊतकों को मजबूत बनाने और रक्त परिसंचरण में सुधार ला सकती हैं. वातदोष के शमन में तेलों की अहम् भूमिका होती है. अतः संधिवात के इलाज में आयुर्वेदीय औषधि सिद्ध तेलों द्वारा चिकित्सक के निर्देशन में की गयी मालिश बहुत लाभकारी सिद्ध होती है.
  • स्वेदन  – एक औषधीय भाप स्नान शरीर दर्द को कम करने और शरीर के विषैले तत्वों को कम करने के लिए उपयोग किया जाता हैं.
  • जानुबस्ति – यह घुटनों की आर्थराइटिस के लिए एक विशेष चिकित्सा है जिसमें घुटने की आयुर्वेदिक औषधि सिद्ध तेल से एक विशेष विधि द्वारा सिकाई की जाती है.

अन्य ध्यान रखने वाली बातें 

उपरोक्त उपचारों के अलावा, कुछ अन्य बातें भी हैं जिनको ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार करते वक्त ध्यान में रखा जाना चाहिए।
  •  हर रोज 30 से 40 मिनट चलना खुद को बहुत थकाये नहीं
  •  नियमित भोजन में घी और तेल को मध्यम मात्रा में शामिल करे, क्योंकि वह ऊतकों और जोड़ों चिकनापन और लचिलापन बनाए रखने में मदद करते हैं।
  •  डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से बचें, हर रोज ताजा खाना बनाए और जब खाना गरम हो तभी खाना खाने की कोशिश करे।
  •  हर कीमत पर साफ्टड्रिंक और कार्बोनेटड पेय से बचें क्योंकि वे शरीर के कार्य़ को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • मसालेदार, तीखा और अत्य धिक तेलयुक्त भोजन से बचें।
नोट: यह लेख पाठकों के ज्ञान वर्धन के लिए है, यहाँ बताई गयी औषधियों का सेवन व अन्य उपचार किसी क्वालिफाइड आयुर्वेद चिकिस्तक की देख-रेख में ही लें.

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